मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

पिता

पिता
रचयिता
माँ ने सींच मुझको,
तुमने दोनों को
वे सुलाती गोद में,
तुम सीने पर
वो गिरने न देती, देती बांहों का पलना,
ऊँगली पकड़-पकड़ सिखाया तुमने चलना
तुम डाँटो वो दुलराती, वो डाँटे तुमने मनाया,
कभी कुम्हार सा दे आकार, तुमने धूप में तपाया,
उसकी ममता से कोमल मन,
तुमसे संबल है
संतुलन जीवन का,
दोनों से हर पल है
नहीं और कुछ विरासत में
बस इतना कर दो,
जीवन से लड़ने की शक्ति,

थोड़ी मुझ में भी भर दो.........
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अपराजिता ग़ज़ल

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